पुरातात्विक स्तम्भ अभिलेख व उनके स्थान |
|||||
स्तम्भ लेख |
स्थल |
सम्बद्ध व्यक्ति |
समय |
अभिलेख की विषय-वस्तु |
|
1. |
मेहरौली स्तम्भ लेख |
मेहरौली (दिल्ली) कुतुब मीनार परिसर |
चन्द्रगुप्त-II |
गुप्तकालीन |
यह स्तम्भ चन्द्रगुप्त द्वितीय (380-412 ई.) के वैष्णव होने, वंगा (बंगाल) विजय तथा सप्त सिन्धु के समीप विभिन्न राजाओं के समूह से युद्ध एवं विजय के विवरण प्रदान करता है। मूलतः यह स्तम्भ विष्णुपद पहाड़ी (सम्भवत: उदयगिरि, मध्य प्रदेश) पर स्थापित था जिसे बाद में दिल्ली के किसी शासक द्वारा यहाँ (दिल्ली में) स्थापित करवाया गया। |
2. |
प्रयाग प्रशस्ति (स्तम्भ लेख) |
प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) |
समुद्रगुप्त |
गुप्तकालीन |
संस्कृत में रचित यह प्रशस्ति मूलत: एक अशोक स्तम्भ पर अंकित है, जो समुद्रगुप्त द्वारा 200 ई. में कौशाम्बी से प्रयाग लाया गया था। इस पर समुद्रगुप्त के दरबारी कवि हरिषेण ने काव्यात्मक शैली में समुद्रगुप्त के वंश परिचय, उसकी विजयों एवं राज्यविस्तार का वर्णन किया है। Advertisement
|
3. |
बौद्ध स्तम्भ लेख |
भरहुत (सतना,मध्य प्रदेश) |
राजा वासुदेव |
शुंग काल |
इस अभिलेख से शुंग वंश के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। |
4. |
मथुरा स्तम्भ लेख |
मथुरा (उत्तर प्रदेश) |
चन्द्रगुप्त II |
गुप्तकालीन |
यह प्रथम गुप्त अभिलेख है, जिसमें गुप्त संवत् का प्रथम वर्ष वर्णित है। इस स्तम्भ लेख द्वारा वैष्णव धर्म के अनुयायी गुप्त सम्राट की धार्मिक सहिष्णुता पर प्रकाश पड़ता है। इसमें माहेश्वर समुदाय के उदिताचार्य का भी वर्णन है। |
5. |
गरुड़ स्तम्भ लेख (हेलिओडोरस स्तम्भ) |
बेसनगर (विदिशा मध्य प्रदेश) |
भागभद्र, होलिओड इण्डो-ग्रीक शासक एटिंआलकिडस का राजदूत] |
शुंग काल |
इसमें दो अभिलेख उत्कीर्ण हैं। एक अभिलेख में हेलियोडोरस को वासुदेव का अनुयायी बताते हुए | उसके द्वारा स्तम्भ के निर्माण का वर्णन है तथा दूसरे अभिलेख में महाभारत के एक श्लोक का उल्लेख है। |
6. Advertisement
|
एरण स्तम्भ लेख |
एरण ( सागर, मध्य प्रदेश) |
समुद्रगुप्त |
गुप्तकालीन |
यह स्तम्भ लेख समुद्रगुप्त के व्यक्तिगत मामलों की जानकारी देता है। यह विदर्भी शैली में है। इस पर अंक उत्कीर्ण किए गए हैं। |
7. |
एरण स्तम्भ लेख |
एरण (मध्य प्रदेश) |
बुद्धगुप्त |
गुप्तकालीन |
यह स्तम्भ लेख भगवान विष्णु का सर्वप्रथम अभिलेखीय प्रमाण है तथा इसमें भगवान विष्णु की महिमा में महाराजा मातृ विष्णु एवं धन्य विष्णु द्वारा ध्वज स्तम्भ के निर्माण का उल्लेख है। इसमें सप्ताह के दिनों के नामों का प्रारम्भिक उल्लेख किया गया है। |
8. |
भीतरी स्तम्भ लेख |
भीतरी (गाजीपुर, उत्तर प्रदेश) |
स्कन्दगुप्त |
गुप्तकालीन |
इस लेख में स्कन्दगुप्त के वंश परिचय, हूणों के आक्रमण तथा स्कन्दगुप्त द्वारा उनके दमन का उल्लेख है। |
9. |
बिहार स्तम्भ लेख Advertisement
|
बिहारशरीफ (पटना, बिहार) |
स्कन्दगुप्त |
गुप्तकालीन |
इस स्तम्भ पर कोई तिथि अंकित नहीं है। इस पर स्कन्दगुप्त तक के गुप्त शासकों तथा कुछ पदाधिकारियों का उल्लेख है।। |
10. |
बिलसड़ स्तम्भ लेख |
भिलसड़ (एटा, (उत्तर प्रदेश) |
कुमार गुप्त-1 |
गुप्तकालीन |
इस अभिलेख में गुप्त संवत 96 (415 ई.) अंकित है तथा कुमारगुप्त तक के गुप्त शासकों का उल्लेख है। इसी अभिलेख में ध्रुवशर्मा नामक एक ब्राह्मण द्वारा कार्तिकेय मंदिर तथा धर्मसंघ के निर्माण का उल्लेख भी है। |
11. |
एरण स्तम्भ लेख |
एरण (मध्य प्रदेश) |
भानुगुप्त |
गुप्तकालीन |
510 ई. के इस अभिलेख में भानुगुप्त को विश्व का सर्वश्रेष्ठ वीर कहा गया है तथा हूणों के विरुद्ध युद्ध करते हुए उसके मित्र गोपराज की मृत्यु तथा उसके पश्चात् गोपराज की पत्नी के सती होने का उल्लेख है। |
12. |
तालगुंडा स्तम्भ लेख |
शिमोगा (मैसूर, कर्नाटक) |
शांति वर्मन / | मयूर शर्मन Advertisement
|
गुप्तकालीन |
यह स्तम्भ लेख दक्षिण में कदम्बों के इतिहास के अध्ययन का महत्वपूर्ण स्रोत है इसमें कदम्ब शासक मयूरशर्मन के पल्लवों से संघर्ष का उल्लेख है। |
साहित्यिक स्रोत
यद्यपि प्राचीन भारतीयों को लिपि का ज्ञान 2500 ईसा पूर्व में भी था, परन्तु हमारी प्राचीनतम् उपलब्ध पाण्डुलिपियाँ ईसा की चौथी सदी के पहले की नहीं हैं तथा ये मध्य एशिया से प्राप्त हुई हैं।
भारत में पाण्डुलिपियाँ, भोजपत्रों और ताड़पत्रों पर लिखी मिलती हैं, परन्तु मध्य एशिया में जहाँ भारत से प्राकृत भाषा फैल गई थी, ये पाण्डुलिपियाँ मेषचर्म एवं काष्ठफलकों पर लिखी गई हैं।
सम्पूर्ण भारत में संस्कृत की पुरानी पाण्डुलिपियाँ मिली हैं, परन्तु इनमें से अधिकांश दक्षिण भारत कश्मीर और नेपाल से प्राप्त हुई हैं।
हिंदुओं के धार्मिक साहित्य में वेद, रामायण, महाभारत, पुराण आदि सम्मिलित हैं।
ऋग्वेद को 1500-1000 ईसा पूर्व के लगभग का मान सकते हैं, लेकिन अथर्ववेद, यजुर्वेद, ब्राह्मणग्रंथ, अरण्यकों और उपनिषदों को 1000-500 ईसा पूर्व के लगभग का माना जाता है।
ऋग्वेद में मुख्यतः देवताओं की स्तुतियाँ हैं, परन्तु बाद के साहित्य में स्तुतियों के साथ-साथ कर्मकाण्ड, जादू-टोना और पौराणिक आख्यान हैं। उपनिषदों में हमें दार्शनिक चिंतन मिलते हैं।
वैदिक मूलग्रंथ का अर्थ समझ में आए इसलिए वेदांगों
अर्थात् वेद के अंगभूत शास्त्रों की रचना की गयी थी।वेदों का अर्थ समझने व सूक्तों के सही उच्चारण के लिए वेदांग की रचना की गई।
- सूत्रलेखन का सबसे विख्यात उदाहरण पाणिनि का व्याकरण ग्रंथ अष्टाध्यायी, है जो 400 ईसा पूर्व के आस-पास लिखा गया था।
- पाणिनी ने अपने समय के समाज, अर्थव्यवस्था और संस्कृति पर गहन प्रकाश डाला।
- महाभारत, जिसे व्यास की कृति माना जाता है, संभवत: दसवीं सदी ईसा पूर्व से चौथी सदी ई. तक की स्थिति का आभास देता है। पहले इसमें केवल 8,800 श्लोक थे तथा इसका नाम जय संहिता था, जिसका अर्थ है, विजय सम्बंधी संग्रह ग्रंथ कालान्तर में इसके श्लोकों की संख्या बढ़कर 24,000 हो गई।
- वर्तमान में इस महाकाव्य में एक लाख से अधिक श्लोक हो गए हैं। और तदानुसार यह शतसाहस्री संहिता या महाभारत कहलाने लगा। इससे तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति का ज्ञान होता है।
- वाल्मीकि रामायण में मूलतः 6,000 श्लोक थे, जो बढ़कर 12,000 श्लोक हो गए और वर्तमान में इसमें 24,000 श्लोक हो गए। इसकी रचना संभवतः ईसा पूर्व पाँचवीं सदी में प्रारम्भ हुई थी जिसकी रचना महाभारत के बाद हुई प्रतीत होती है।
- राजाओं के द्वारा कराए जाने वाले अनुष्ठान और तीन उच्च वर्णों के धनाढ्य पुरुषों द्वारा किए जाने वाले अनुष्ठान व सार्वजनिक यज्ञों के विधि-विधान श्रौतसूत्रों में दिए गए हैं।
- जातकर्म (जन्मानुष्ठान), नामकरण, उपनयन, विवाह श्राद्ध आदि घरेलू या पारिवारिक अनुष्ठानों का विधि-विधान गृह्यसूत्रों में पाया जाता है। श्रौतसूत्र और गृह्यसूत्र दोनों 600-300 ई. पू. के आस-पास के हैं।
- शुल्वसूत्र में यज्ञवेदी के निर्माण के लिए विविध प्रकार के मापों का विधान है। ज्यामिति और गणित का अध्ययन वहीं से आरंभ होता है।
- प्राचीनतम् बौद्ध ग्रंथ पालि भाषा में लिखे गए थे। यह भाषा मगध अर्थात् दक्षिण बिहार में बोली जाती थी।
- इन ग्रंथों में हमें केवल बुद्ध के जीवन के विषय में ही नहीं, बल्कि उनके समय के मगध, उत्तरी बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के अनेक शासकों के विषय में भी जानकारी मिलती है।
- ऐसा विश्वास था कि, गौतम के रूप में जन्म लेने से पहले बुद्ध 550 से अधिक पूर्व जन्मों से (पशु के रूप में भी) गुजरे थे, जिनका वर्णन जातक कथाओं में है। जातक कथाएँ बौद्ध ग्रंथ के सुत्तपिटक के सुदृढकनिकाय का 10वाँ भाग हैं। ये महात्मा बुद्ध के पूर्व जन्म सम्बंधी कथाएँ हैं। ये कथाएँ बुद्ध की बोधिसत्व (बुद्धत्व प्राप्त करने के लिए उद्यमशील) अवस्था को दर्शाती हैं।
- जैन ग्रंथों की रचना प्राकृत भाषा में हुई थी। ईसा की छठीं सदी में गुजरात के वल्लभी नगर में इन्हें अन्तिम रूप से संकलित किया गया था।
- धर्मसूत्र, स्मृतियाँ और टीकाएँ इन तीनों को मिलाकर धर्मशास्त्र कहा जाता है। धर्मसूत्रों का संकलन 500-200 ई. पू. में हुआ था।
- कौटिल्य का अर्थशास्त्र अत्यन्त महत्वपूर्ण विधिग्रंथ है। यह 15 अधिकरणों या खंडों में विभक्त है। इसमें प्राचीन भारतीय राजतंत्र व अर्थव्यवस्था के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण सामग्री मिलती है।
- कालिदास ने काव्य और नाटक लिखे, जिनमें अभिज्ञानशाकुंतलम् सबसे प्रसिद्ध है।
- कुछ प्राचीनतम तमिल ग्रंथ भी हैं, जो संगम साहित्य में संकलित हैं। राजाओं द्वारा संरक्षित विद्या केन्द्रों में एकत्र होकर कवियों और भाटों ने तीन-चार सदियों में इस साहित्य का सृजन किया था। ऐसी साहित्यिक सभा को संगम कहते थे, इसलिए इस समय लिखे गये सम्पूर्ण साहित्य संगम साहित्य के नाम से प्रसिद्ध हो गये।
- संगम ग्रंथ वैदिक ग्रंथों से, विशेषकर ऋग्वेद से भिन्न प्रकार के हैं। ये धार्मिक ग्रंथ नहीं हैं। इसके अन्तर्गत अनेक कवियों ने मुक्तकों व प्रबंध काव्यों की रचना की है, जिनमें बहुत से नायकों (वीरपुरुषों) और नायिकाओं का गुणगान है।
संगम साहित्य के प्रमुख ग्रन्थ हैं: तोलकाप्पियम, शिलप्पादिकारम एवं मणिमेखलै ।
- संगम ग्रंथों में बहुत से नगरों का उल्लेख मिलता है। इनमें उल्लिखित कावेरीपट्टनम् का समृद्धिपूर्ण अस्तित्व पुरातात्विक साक्ष्य से प्रमाणित हुआ है।
- ईसा की आरंभिक सदियों में प्रायद्वीपीय तमिलनाडु के लोगों के सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक जीवन के अध्ययन के लिए संगम साहित्य एकमात्र प्रमुख स्रोत है।
Leave a comment